राजदूत निक्की हेली
संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी स्थायी प्रतिनिधि
संयुक्त राष्ट्र को संयुक्त राज्य अमेरिका का मिशन
न्यू यार्क सिटी
20 फरवरी 2018
जैसा दिया गया
आज हमारे साथ यहां होने के लिए महासचिव महोदय आपका धन्यवाद, साथ ही साथ श्रीमान म्लादेनोव का भी उनकी ब्रीफिंग के लिए धन्यवाद।
हम आज यहां एक ऐसे फोरम में मिल रहे हैं जिससे हम सभी बहुत परिचित हैं। मध्य पूर्व पर यह सत्र कई सालों से हर महीने होता रहा है। इसका फोकस लगभग पूरी तरह इसराइलियों और फिलिस्तीनियों से संबंधित मुद्दों पर रहा है। और हमने कई बार कई एक जैसी दलीलों और विचारों को बार-बार सुना है। हमने इस सुबह पहले ही उन्हें दोबारा सुना है।
यह कुछ ऐसा है कि जैसे वही बातें बार-बार कहने से कुछ हासिल होगा, वह भी असल में कड़ी मेहनत और आवश्यक समझौता किए बिना।
पिछले साल की शुरुआत से, हमने चर्चा को व्यापक बनाने की कोशिश की है और हमें ऐसा करने में कुछ सफलता मिली है। मैं अपने सहकर्मियों को धन्यवाद देती हूं जिन्होंने उन व्यापक चर्चाओं में भाग लिया है
हमारे ऐसा करने के पीछे एक कारण हमारी अच्छी तरह से स्थापित वह मान्यता है कि संयुक्त राष्ट्र इजरायल-फिलिस्तीनी मुद्दों पर पूरी तरह से बेहिसाब समय व्यतीत करता है। ऐसा नहीं है कि कि वे मुद्दे महत्वहीन हैं। वे यकीनन बहुत अहम हैं। समस्या यह है कि जब भी इजरायल की बात आती है तो संयुक्त राष्ट्र ने अपने आपको बार-बार मोटे तौर पर पक्षपाती साबित किया है।
जैसे कि, संयुक्त राष्ट्र के असंतुलित फोकस ने दोनों पक्षों के बीच तनावों और शिकायतों को बढ़ा करके वास्तव में समस्या को हल करने के लिहाज से और अधिक कठिन बना दिया है।
हमने चर्चा को एक अन्य कारण से बदलने की कोशिश की है कि क्षेत्र चुनौतियों के जिस व्यापक दायरे से जूझ रहा है उसके सामने इजरायली-फिलिस्तीनी संघर्ष बौना है।
जैसा कि हम आज यहां मिल रहे हैं, मध्य पूर्व सच में कई भयानक समस्याओं से ग्रस्त है।
यमन ने धरती की सबसे खराब मानवीय आपदाओं में से एक को झेला है, जिसमें लाखों लोग भुखमरी का सामना कर रहे हैं। इस बीच, मिलीशिया समूह यमन से पड़ोसी देशों में ईरान के रॉकेट दागते हैं। सीरिया में, असद शासन अपने ही लोगों को जान से मारने के लिए रासायनिक हथियारों का उपयोग कर रहा है। यह युद्ध 5 लाख से अधिक सीरियाईयों के जीवन की बलि ले चुका है।
लाखों लोगों को पड़ोसी जॉर्डन, तुर्की और लेबनान में शरणार्थियों के रूप में धकेल दिया गया है, जिससे उन देशों में बड़ी मुश्किलें पैदा हो रही हैं।
लेबनान में, हिज़बुल्लाह आतंकियों ने पहले से कहीं ज्यादा नियंत्रण स्थापित किया है, अवैध रूप से आक्रामक हथियारों का भंडार तैयार करके, एक ऐसी खतरनाक बढ़त को बुलावा दिया है जो क्षेत्रीय सुरक्षा को नष्ट-भ्रष्ट कर सकता है।
ISIS अधिकांश इलाके में अमानवीय हद तक क्रूरता में लगी हुई है। उन्हें इराक और सीरिया में गंभीर झटका लगा है, लेकिन वे अभी तक पूरी तरह से नष्ट नहीं हुए हैं, और वे अभी भी खतरा बने हुए हैं।
मिस्र बार-बार होने वाले आतंकी हमलों से दो-चार है।
और ज़ाहिर है कि ईरान में आतंकवादी प्रायोजक सत्ता है जो कि उन सभी समस्याओं को शुरू कर और बढ़ावा दे रही है जो मैंने अभी बताई हैं।
पूरे क्षेत्र में इन विशाल सुरक्षा और मानवीय चुनौतियों पर हमारा अधिक से अधिक ध्यान होना चाहिए, न कि महीने दर महीने हम यहां बैठे रहें और मध्य पूर्व में सबसे अधिक लोकतांत्रिक देश का इस्तेमाल क्षेत्र की समस्याओं के लिए एक बलि के बकरे के तौर पर करें।
लेकिन यहां हम फिर से दोहराते हैं।
मेरा मतलब यह नहीं है कि इजरायली-फिलिस्तीनी संघर्ष में कोई तकलीफ़ नहीं है। दोनों पक्षों ने बहुत नुकसान उठाया है। अनेकों निर्दोष इजरायली आत्मघाती बम विस्फोटों, छुरेबाजियों, और अन्य आतंकी हमलों से मारे गए या घायल हुए हैं। इसराइल को लगातार दुनिया के किसी भी अन्य देश से कहीं अधिक सुरक्षा खतरे में रहने के लिए मजबूर किया गया है। इसे उस रूप में जीवित नहीं रहना चाहिए।
और फिर भी, इजरायल ने उन भारी बोझों पर विजय पाई है। यह एक ऐसी जीवंत अर्थव्यवस्था वाला फलता-फूलता देश है, जो तकनीक, विज्ञान और कला के नाम पर दुनिया में बहुत सा योगदान देती है।
ये फिलिस्तीनी लोग हैं जो ज्यादा पीड़ित हैं। गाज़ा में फिलिस्तीनी लगातार हमास के आतंकी उत्पीड़न में रह रहे हैं। मैं तो इसे एक शासी प्राधिकरण भी नहीं कह सकती, क्योंकि हमास सरकार सरकारी सेवाओं के तौर पर लोगों को सामान्य तौर पर दी जाने वाली चीजें भी नहीं उपलब्ध करा रही है।
गाज़ा के लोग सच में भयावह परिस्थितियों में रहते हैं, जबकि उनके हमास शासक अपने संसाधनों को आतंकवादी सुरंगों और रॉकेट बनाने में लगाते हैं। पश्चिमी किनारे पर रहने वाले फिलिस्तीनी भी कम पीड़ित नहीं हैं।
बहुत सारे लोग मर चुके हैं, और इस संघर्ष में बहुत अधिक संभावनाएं गंवाई जा चुकी हैं।
आज हमसे फिलिस्तीनी अथॉरिटी के राष्ट्रपति अब्बास भी जुड़े हैं। मुझे खेद है कि उन्होंने दूसरों की टिप्पणी सुनने के लिए कक्ष में रहने से मना कर दिया। भले ही वे कमरा छोड़कर जा चुके हैं, फिर भी मैं उन पर अपनी बाकी टिप्पणियों को जारी रखूंगी।
राष्ट्रपति अब्बास, जब नए अमेरिकी प्रशासन ने पिछले जनवरी में कार्यभार ग्रहण किया, तो हमने सुरक्षा परिषद प्रस्ताव 2334 के पारित होने की ताजा पृष्ठभूमि के खिलाफ ऐसा किया।
पिछले अमेरिकी प्रशासन के अस्त-व्यस्तता के दिनों में, अमेरिका ने इस प्रस्ताव को पारित होने देकर एक गंभीर त्रुटि की। प्रस्ताव 2334 कई स्तरों पर गलत था। मैं अब इसके विस्तार में नहीं जा रही हूं।
लेकिन विस्तार से परे, शायद इसकी सबसे बड़ी खामी यह थी कि इसने उस झूठी धारणा को बढ़ावा दिया जो कि इजरायल को इसराइलियों और फिलीस्तीनियों के बीच अविश्वास बढ़ाकर शांति की संभावना को नुकसान पहुंचाने वाले ऐसे समझौते में धकेला जा सकता है जो उसके महत्वपूर्ण हितों को चोट पहुंचाता हो।
पिछले साल, संयुक्त राज्य अमेरिका ने उस नुकसान की भरपाई के लिए काम किया है। संयुक्त राष्ट्र में, मैंने इजरायल के खिलाफ पक्षपात का विरोध किया है, जैसा कि किसी भी सहयोगी को करना चाहिए।
लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मैं या हमारा प्रशासन फिलिस्तीनी लोगों के खिलाफ है। सच्चाई इसके बिल्कुल विपरीत है। हम फिलिस्तीनी लोगों की तकलीफों को समझते हैं, जैसा कि मैंने आज यहां इस बात को समझा है।
आज मैं यहां शांति के कार्य में फिलिस्तीनी लोगों के लिए अमेरिका के फैली बांहों की पेशकश कर रही हूं। हम समृद्धि और सह-अस्तित्व के भविष्य को देखने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। हम आज आपका फिलीस्तीनी लोगों के नेता के रूप में स्वागत करते हैं।
लेकिन मैं हाल ही में आपके शीर्ष वार्ताकार सईब एरकात की ओर से दी गई सलाह को अस्वीकार करूंगी। मैं बोलना बंद नहीं करूंगी। इसके बजाय, मैं सम्मानपूर्वक कुछ कड़वी सच्चाइयों को सामने रखूंगी।
फिलिस्तीनी नेतृत्व के पास दो अलग-अलग रास्तों के बीच एक को चुनने का विकल्प है। निरंकुश शासन से सहमत मांगों, घृणित लफ्फाजी और हिंसा को भड़काने का मार्ग है। वह राह फिलिस्तीनी लोगों को मुसीबतों की ओर लेकर गई है और आगे भी उसी दिशा में लेकर जाना जारी रखेगी।
या कि एक मार्ग है वार्ता और समझौते का। इतिहास ने दिखाया है कि वह मार्ग मिस्र और जॉर्डन के लिए सफल रहा है, जिसमें कि भूभाग का हस्तांतरण भी शामिल है। वह राह फिलीस्तीनी नेतृत्व के लिए भी खुली हुई है, बशर्ते उसमें इसे अपनाने का पर्याप्त साहस हो।
संयुक्त राज्य अमेरिका को पता है कि फिलिस्तीनी नेतृत्व हमारे दूतावास को जेरूसलम स्थानांतरित करने के फैसले से बहुत नाखुश था। आपको ऐसे निर्णय को पसंद करने की ज़रूरत नहीं है। आपको इसकी प्रशंसा करने की ज़रूरत नहीं है। आपको इसे स्वीकार करने की भी ज़रूरत नहीं है। लेकिन यह जान लें: वह फैसला अब बदलेगा नहीं।
तो एक बार फिर से, आपको दो रास्तों में से किसी एक को चुनना होगा। आप संयुक्त राज्य अमेरिका की निंदा करने, शांतिवार्ता में अमेरिकी भूमिका को ठुकराने और संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इजरायल के खिलाफ दंडात्मक कदमों के पीछे लगे रहने का विकल्प चुन सकते हैं। मैं आपको विश्वास दिलाती हूं कि वह राह फिलीस्तीनी लोगों को अपनी आकांक्षाओं को पाने की दिशा में लेकर बिल्कुल भी नहीं जाएगी।
या कि आप हमारे दूतावास की जगह को लेकर अपने गुस्से को एक तरफ रखने का विकल्प चुन सकते हैं, और हमारे साथ वार्ता के ज़रिए समझौते की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं जिसमें फिलिस्तीनी लोगों के जीवन में सुधार की अपार संभावनाएं छिपी हैं।
पुरानी बातों और आरोपित एवं अविकसित अवधारणाएं को आगे बढ़ाने से कुछ भी हासिल नहीं होता। वह नज़रिया कई बार आज़माया जा चुका है, और हमेशा नाकाम रहा है। इतने दशकों के बाद, हम नई सोच का स्वागत करते हैं।
जैसा कि मैंने बीते माह इसी बैठक में जिक्र किया था कि संयुक्त राज्य अमेरिका फिलीस्तीनी नेतृत्व के साथ काम करने के लिए तैयार है।
हमारे वार्ताकार मेरे ठीक पीछे बातचीत के लिए तैयार बैठे हैं। लेकिन हम आपके पीछे नहीं दौड़ेंगे। राष्ट्रपति महोदय चुनना आपको है।
आपका धन्यवाद।